इस बार
आएगी
जब
मैं कह दूंगा
साफ-साफ
नहीं जरूरत है तेरी
यहां किसी को
जाकर कुछ देर ठहर
दूर गांव के खेतों में
रेत के टीलों पर
खुरदरे पहाड़ों पर
जहां तेरे इंतजार में
बैठे हैं बच्चे,
बूढ़े और पशु-पक्षी भी
इस महानगर में तो
बनावटी है सब
नहीं बहाता कोई यहां
सच्चे आंसू
किसी की मुसीबत पर
हंसता है ईर्ष्या के साथ
किसी की उपलब्धि पर
सोचता है हर कोई
यहां सिर्फ अपने बारे में
तू आएगी
बाद में बहुत पछताएगी
तुझे भी यहां की हवा लग जाएगी
सावनी और अन्य कवितायें - निहाल सिंह
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*सावनी और अन्य कवितायें - निहाल सिंह*
* सावनी*
काली घटाएँ करती शोर
वन में नाचें पपीहा मोर
मन-मोहक ऋतु आई ऐसी
छाइ हरीतिमा चारों और
अंबर में विधुत्त चमचम...
1 year ago
Achchhe lagi aapki kavita.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
अच्छी कविता है
ReplyDelete---
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