Wednesday, August 5, 2009

बरखा

इस बार
आएगी
जब
मैं कह दूंगा
साफ-साफ
नहीं जरूरत है तेरी
यहां किसी को
जाकर कुछ देर ठहर
दूर गांव के खेतों में
रेत के टीलों पर
खुरदरे पहाड़ों पर
जहां तेरे इंतजार में
बैठे हैं बच्‍चे,
बूढ़े और पशु-पक्षी भी
इस महानगर में तो
बनावटी है सब
नहीं बहाता कोई यहां
सच्‍चे आंसू
किसी की मुसीबत पर
हंसता है ईर्ष्‍या के साथ
किसी की उपलब्धि पर
सोचता है हर कोई
यहां सिर्फ अपने बारे में
तू आएगी
बाद में बहुत पछताएगी
तुझे भी यहां की हवा लग जाएगी

2 comments: